अनुष्टुप छन्द वाक्य
उच्चारण: [ anusetup chhend ]
उदाहरण वाक्य
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- गीता के श्लोक अनुष्टुप छन्द में हैं।
- अनुष्टुप छन्द में चार पाद होते हैं।
- अनुष्टुप छन्द के बारे में इतना विस्तार से पढ़ा.
- अनुष्टुप छन्द का एक-एक चरण आठ वर्ण का होता है।
- संस्कृति के अनुष्टुप छन्द में सँजो कर और इब्सेनीय सरल गद्य को
- आदि कवि वाल्मिकी द्वारा उच्चारित प्रथम श्लोक भी अनुष्टुप छन्द में है।
- यह अति महत्वपूर्ण वैदिक छन्द है, गीता के श्लोक अनुष्टुप छन्द में है…
- वह संस्कृत भाषा में लौकिक छन्दों में प्रथम अनुष्टुप छन्द का श्लोक था।
- २. आदि कवि महर्षी वाल्मीकि के मुख से उच्चारित प्रथम छन्द अनुष्टुप छन्द ही है…
- चन्द्रालोक परिशीलन में विद्वान लेखिका डॉ. स्मिता अग्रवाल ने अनुष्टुप छन्द में काव्यशास्त्रीय सिद्धान्त पर लिखे गये ग्रन्थ ‘चन्द्रालोक' का परिशीलन किया है।
- [27] डॉ. भाण्डारकर का भी यही विचार है कि धर्मसूत्रों की रचना के पश्चात ही अनुष्टुप छन्द वाले धर्मशास्त्रों की रचना की गयी।
- सीता और रामचन्द्र देवता हैं, अनुष्टुप छन्द है, सीता शक्ति हैं, श्रीमान् हनुमान् जी कीलक हैं तथा श्रीरामचन्द्र जी की प्रसन्नता के लिये रामरक्षास्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता है।
- प्राकृत पैंगलम में लिखा है कि संस्कृत ने अनुष्टुप छन्द को गुफ़्तगू का औज़ार बनाया और फिर इन्हीं नक़्शेक़दम पर चलते हुए विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं / बोलियों ने दोहे को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
- विनियोग मंत्र अस्य श्रीं श्रीं यंत्र-मंत्रस्य हिरण्य गर्भ-ऋषि अनुष्टुप छन्द श्री महात्रिपुर संुदरी श्री महा-लक्ष्मी देवता श्री बीजम मम दुःख दारिद्र्य विनाशाय श्री सिद्धि श्री यंत्र श्री महा त्रिपुर सुंदर्ये श्री महालक्ष्म्यै मंत्र जपे विनियोगः।
- देवताओं ने विष्णु को पूर्व की ओर रखकर अनुष्टुप छन्द से परिवृत किया तथा बोले-” तुमको दक्षिण दिशा में गायत्री छन्द से, पश्चिम दिशा में त्रिष्टुप छन्द से और उत्तर दिशा में जगती छन्द से परिवेष्टित करते हैं।
- अनुष्टुप छन्द:,श्री दत्त परमात्मा देवता:, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोग:“,इतना कहकर दाहिने हाथ से फ़ूल और चावल लेकर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा,चित्र या यंत्र पर सिर को झुकाकर चढाने चाहिये,फ़ूल और चावल को चढाने के बाद हाथों को पानी से साफ़ कर लेना चाहिये,और दोनों हाथों को जोडकर प्रणाम मुद्रा में उनके लिये जप स्तुति को करना चाहिये,जप स्तुति इस प्रकार से है:-”जटाधरं पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम।
- अनुष्टुप छन्द:, श्री दत्त परमात्मा देवता:, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोग: “, इतना कहकर दाहिने हाथ से फ़ूल और चावल लेकर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा, चित्र या यंत्र पर सिर को झुकाकर चढाने चाहिये, फ़ूल और चावल को चढाने के बाद हाथों को पानी से साफ़ कर लेना चाहिये, और दोनों हाथों को जोडकर प्रणाम मुद्रा में उनके लिये जप स्तुति को करना चाहिये, जप स्तुति इस प्रकार से है:-” जटाधरं पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम।
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